अत्याचार करने के बाद अत्याचारी निगाह डालते हैं बच्चों पर उठा लेते हैं उन्हें गोद में अपने जीतने की कथा सुनाते हैं
कहते हैं बच्चे कितने अच्छे हैं हमारी तरह नहीं हैं वे अत्याचारी बच्चों के पास आकर थकान मिट जाती है उनकी जो पैदा हुई थी करके अत्याचार।
हिंदी समय में मंगलेश डबराल की रचनाएँ